नरसिंहपुर

बहुजन समाज का नेता ने कुर्बानी दे दी। लेकिन गुलामी ,,बेगारी प्रथा का विरोध किया।

बहुजन समाज का नेता ने कुर्बानी दे दी। लेकिन गुलामी /बेगारी
प्रथा का विरोध किया।


अमर शहीद वीर मनीराम अहिरवार जी की अमर गाथा।


विशेष संघर्ष


भोपाल ।मध्यप्रदेश के इतिहास में यू तो देश की आजादी के आन्दोलन में अनेक लोगों ने शहादत दी है। लेकिन अनुसूचित जाति के अन्तर्गत आने वाली अहिरवार समाज के एकलौता शूरवीर मनीराम जी अहिरवार था। जिसका जन्म चीचली तहसील गाडरवारा जिला नरसिंहपुर मध्यप्रदेश में 21 नबम्वर 19 15 को हुआ। जिनके पिता श्री हीरालाल अहिरवार जी थे। जो कि खेतीबाड़ी करते थे।
मनीराम जी एक होनहार बहादुर और अखाड़ा के सबसे बड़े कलाबाजी थे। चीचली में सन 1942 को अंग्रेजी सेनिक कुछ इस उद्देश्य को लेकर आये थे, कि चीचली राजा पढ़ाई के लिए बाहर थे। उस मौका का लाभ लेने हेतु और राज्य महल पर अपना कब्जा करने आये अंग्रेजी सेना से चीचली गौड़ राजा के खास राजदरबार के सेवक शूरवीर मनीराम जी रक्षा के लिए आगे आये।
माह अगस्त था जिस समय मंदिर में धार्मिक कार्यक्रम का समापन्य था। दुर्भाग्य से चीचली राज्य महल से खबर आई कि सांड़ की मौत हो गई है। सभी राज्य महल की ओर पहुंच रहे थे। जो कि एक बड़ी भीड़ थी। वहीं दूसरी ओर अंग्रेजी सेना का चीचली राज्य महल को अधिप्राप्ति हेतु आये। ये सेनिकों को देख वीर मनीराम जी अहिरवार जो कि चीचली महाराजा श्री शंकर प्रताप जू देव के अतिप्रिय और विश्वसनीय थे। वह देखकर अंग्रेजी सेना को गांव से भगाने के लिए पथराव कर करने लगे। लेकिन मुर्ख अंग्रेजों ने उन्हें उग्रवादी बोला और जो लोग राजमहल की ओर जाने वाले लोगों को रोकने के लिए आसमानी गोली चलाने लगे। ये स्थिति को देखते हुए वीर मनीराम जी अहिरवार ने पथराव तेज कर दिया। इसी कार्य में मंशाराम जसाटी जी आगे आ गये। जिन्होंने भारत माता की जय। इंकलाब जिंदाबाद और स्वतंत्रता हमारा अधिकार है। इस प्रकार के नारे लगा रहे थे। तब वीर शहीद मनीराम जी ने अपने महल की सुरक्षा और गांव के लोगों के बचाव हेतु अपनी कला का ऐसा अचूक प्रदर्शन किया की उनके पथराव से एक अंग्रेज सैनिक की खोपड़ी लहू-लुहान हो गई। तब अंग्रेजी सेना से वीर मनीराम जी अहिरवार सीधा मुकाबले करने लगे। सैनिकों ने पहली गोली मनीराम जी अहिरवार जी को लक्ष्य कर चली जो कि मंशाराम जी जसाटी को लगी और वह घटना स्थल पर ही शहीद हुए। यह शहादत पर मनीराम जी आगबबूला हुए, जिन्होंने अंग्रेजी सैनिकों को गाली देते हुए पुनः गोली चलाने को ललकारा उन्होंने कहा कि तुमने यदि मां का दुध पिया है तो मुझ पर गोली चलाओं क्यों निरपराध पर गोली चलाई। अंग्रेजी सेना ने फिर दूसरी गोली वीर मनीराम जी अहिरवार पर चलाई। जो गोली अपने घर के बाहर खड़ी गौराबाई कतिया जो कि अपनी बेटी पर्वती कतिया को ढूंढ रही थी। ये गोली उन्हें लगीं। वह भी शहीद हो गई। लेकिन अंतिम सांस तक मनीराम जी अहिरवार सेना को युद्ध में छके छुड़ाने में सफल हूये। तथा इंकलाब जिन्दाबाद! और अपना सीना तान सेना से लड़े। ये वीर योद्धवीर थे, अखाड़ा के महान कलाकार थे जो कि गोलीबारी से हर बार अपने को बचा कर चीचली महल पर कब्जा करने से बचाया। तथा अंग्रेजी सेना को चीचली गांव व महल को छोड़ने को मजबूर किया।
दूसरे दिन याने की 24 अगस्त को सेना प्रमुख जनरल पूनम अग्रवाल नामक इंस्पेक्टर अपनी सेना के साथ वीर मनीराम जी अहिरवार को खोजने चीचली आया। जिसने किसी को भी मनीराम जी की पूछताछ के लिए गिरफ्तार कर लिया और साथ ले गए। वीर मनीराम अहिरवार राजमहल की समुचित सुरक्षा के इंतजाम में लगे रहे। चूँकि चीचली राजा की अनुपस्थिति में सम्पूर्ण सुरक्षा का प्रभार वीर मनीराम जी के ऊपर था। लेकिन कुछ लोगों ने अपनी जान से मारने बचाने का अंग्रेजी सेना से वादा कर मनीराम जी अहिरवार को पकड़वा दिया। लोगों ने मनीराम जी की हर गुप्त जानकारी दी कि यह बहुत बलशाली है। अखाड़ा का महान कलाबाजी है। चीचली राजा का खास सुरक्षा सेबक है। जो आदिवासियों और उनकी अहिरवार समाज की रक्षा के लिए सदैव जी जान से सेवा करता है। ये सब जानकारी प्राप्त कर अंग्रेजी सेना ने वीर मनीराम जी अहिरवार को ढूंढने में सफल हो गये। उन्होंने यह तय किया कि ये मजबूत काठी का पहलवान है। इसको न जेल भेजेंगे और न ही इसका कोई चालान जारी करेंगे। अंततः उन्हें अंग्रेजी सेना द्रारा गुप्त रूप से गिरफ्तार किया गया। लेकिन किसी भी लोगों ने परिवार को जानकारी नहीं दी क्योंकि मनीराम जी चीचली राजा स्वर्गीय श्री शंकर प्रताप सिंह जू देव के राजदरबारी थे। जो गौड़वाना परिवार के साथ ही पूर्व से उनके साथ ही चीचली आये थे।
अंग्रेजो से की गई चुगली के अनुरूप वीर मनीराम जी को जिंदा सेना ने गुलामी कराने, बोझा /सामान यहां से वहां ले जाने यानि कि बेगारी कराने हेतु सेना ने उन्हें अपने गुप्त स्थान पर ले गए। वीर शहीद मनीराम जी एक स्वाभिमान और सामाजिक हितकारी व आन्दोलन के लिए कुर्बान हो जाने वाले महान व्यक्ति थे। सेना ने उन्हें तरह तरह की यातना दी। मारपीट करते रहे। लेकिन वीर मनीराम जी न चीचली राजा के गुप्त मामले बताया। और न ही गुलामी एवं बेगारी करने को तैयार हुये। उन्होंने हर प्रकार की प्रताड़ना सहर्ष स्वीकार कर ली, लेकिन अंग्रेजी सेना की एक भी बात नहीं मानी। अंग्रेजी सेना उन्हें अपनी गुप्त बंदीगाह में रखते थे। क्योंकि उन्हें यह भलीभांति ज्ञात हो चुका था कि मनीराम जी को थोड़ी सी भी डील दे दी गई तो ये समूची सेना को अकेले ही तबाही करने के लिए काफी है। वीर मनीराम जी अहिरवार को कठोर से कठोर यातनाओं के कारण उन्होंने हंसते – हंसते शहादत देकर अहिरवार समाज कुल को गौरवान्वित करने के साथ-साथ देश के आजादी आन्दोलन में संघर्ष किया है। वीर मनीराम जी अहिरवार के पुत्र स्वर्गीय श्री गरीबदास अहिरवार वीर मनीराम जी के चहेते पुत्र थे। जिनका परिवार आज भी चीचली में है। जो उनकी विरासत एवं अहिरवार समाज के साथ ही अनुसूचित जाति वर्ग के अमर शहीद वीर मनीराम जी अहिरवार की कुर्बानी पर सरकारी दर्जा न मिलने पर निरंतर संघर्ष कर रहे हैं। वीर मनीराम अहिरवार जी मध्यप्रदेश के एकमात्र ऐसे महान महापुरुष थे। देश की आजादी के आन्दोलन में अपने प्राणों की आहुति दी और सामाजिक स्वाभिमान को बढ़ाया है। जिनके संघर्ष करने के एक सप्ताह बाद अंग्रेजी सेना की किसी भी बात स्वीकार न करने के बाद मातृभूमि पर कुर्बानी देने पर सरकार को शीघ्र राष्ट्रीय शहीद दर्जा दिया जाना चाहिए।

अमर शहीद वीर मनीराम अहिरवार जी की अमर गाथा।


विशेष संघर्ष


भोपाल ।मध्यप्रदेश के इतिहास में यू तो देश की आजादी के आन्दोलन में अनेक लोगों ने शहादत दी है। लेकिन अनुसूचित जाति के अन्तर्गत आने वाली अहिरवार समाज के एकलौता शूरवीर मनीराम जी अहिरवार था। जिसका जन्म चीचली तहसील गाडरवारा जिला नरसिंहपुर मध्यप्रदेश में 21 नबम्वर 19 15 को हुआ। जिनके पिता श्री हीरालाल अहिरवार जी थे। जो कि खेतीबाड़ी करते थे।
मनीराम जी एक होनहार बहादुर और अखाड़ा के सबसे बड़े कलाबाजी थे। चीचली में सन 1942 को अंग्रेजी सेनिक कुछ इस उद्देश्य को लेकर आये थे, कि चीचली राजा पढ़ाई के लिए बाहर थे। उस मौका का लाभ लेने हेतु और राज्य महल पर अपना कब्जा करने आये अंग्रेजी सेना से चीचली गौड़ राजा के खास राजदरबार के सेवक शूरवीर मनीराम जी रक्षा के लिए आगे आये।
माह अगस्त था जिस समय मंदिर में धार्मिक कार्यक्रम का समापन्य था। दुर्भाग्य से चीचली राज्य महल से खबर आई कि सांड़ की मौत हो गई है। सभी राज्य महल की ओर पहुंच रहे थे। जो कि एक बड़ी भीड़ थी। वहीं दूसरी ओर अंग्रेजी सेना का चीचली राज्य महल को अधिप्राप्ति हेतु आये। ये सेनिकों को देख वीर मनीराम जी अहिरवार जो कि चीचली महाराजा श्री शंकर प्रताप जू देव के अतिप्रिय और विश्वसनीय थे। वह देखकर अंग्रेजी सेना को गांव से भगाने के लिए पथराव कर करने लगे। लेकिन मुर्ख अंग्रेजों ने उन्हें उग्रवादी बोला और जो लोग राजमहल की ओर जाने वाले लोगों को रोकने के लिए आसमानी गोली चलाने लगे। ये स्थिति को देखते हुए वीर मनीराम जी अहिरवार ने पथराव तेज कर दिया। इसी कार्य में मंशाराम जसाटी जी आगे आ गये। जिन्होंने भारत माता की जय। इंकलाब जिंदाबाद और स्वतंत्रता हमारा अधिकार है। इस प्रकार के नारे लगा रहे थे। तब वीर शहीद मनीराम जी ने अपने महल की सुरक्षा और गांव के लोगों के बचाव हेतु अपनी कला का ऐसा अचूक प्रदर्शन किया की उनके पथराव से एक अंग्रेज सैनिक की खोपड़ी लहू-लुहान हो गई। तब अंग्रेजी सेना से वीर मनीराम जी अहिरवार सीधा मुकाबले करने लगे। सैनिकों ने पहली गोली मनीराम जी अहिरवार जी को लक्ष्य कर चली जो कि मंशाराम जी जसाटी को लगी और वह घटना स्थल पर ही शहीद हुए। यह शहादत पर मनीराम जी आगबबूला हुए, जिन्होंने अंग्रेजी सैनिकों को गाली देते हुए पुनः गोली चलाने को ललकारा उन्होंने कहा कि तुमने यदि मां का दुध पिया है तो मुझ पर गोली चलाओं क्यों निरपराध पर गोली चलाई। अंग्रेजी सेना ने फिर दूसरी गोली वीर मनीराम जी अहिरवार पर चलाई। जो गोली अपने घर के बाहर खड़ी गौराबाई कतिया जो कि अपनी बेटी पर्वती कतिया को ढूंढ रही थी। ये गोली उन्हें लगीं। वह भी शहीद हो गई। लेकिन अंतिम सांस तक मनीराम जी अहिरवार सेना को युद्ध में छके छुड़ाने में सफल हूये। तथा इंकलाब जिन्दाबाद! और अपना सीना तान सेना से लड़े। ये वीर योद्धवीर थे, अखाड़ा के महान कलाकार थे जो कि गोलीबारी से हर बार अपने को बचा कर चीचली महल पर कब्जा करने से बचाया। तथा अंग्रेजी सेना को चीचली गांव व महल को छोड़ने को मजबूर किया।
दूसरे दिन याने की 24 अगस्त को सेना प्रमुख जनरल पूनम अग्रवाल नामक इंस्पेक्टर अपनी सेना के साथ वीर मनीराम जी अहिरवार को खोजने चीचली आया। जिसने किसी को भी मनीराम जी की पूछताछ के लिए गिरफ्तार कर लिया और साथ ले गए। वीर मनीराम अहिरवार राजमहल की समुचित सुरक्षा के इंतजाम में लगे रहे। चूँकि चीचली राजा की अनुपस्थिति में सम्पूर्ण सुरक्षा का प्रभार वीर मनीराम जी के ऊपर था। लेकिन कुछ लोगों ने अपनी जान से मारने बचाने का अंग्रेजी सेना से वादा कर मनीराम जी अहिरवार को पकड़वा दिया। लोगों ने मनीराम जी की हर गुप्त जानकारी दी कि यह बहुत बलशाली है। अखाड़ा का महान कलाबाजी है। चीचली राजा का खास सुरक्षा सेबक है। जो आदिवासियों और उनकी अहिरवार समाज की रक्षा के लिए सदैव जी जान से सेवा करता है। ये सब जानकारी प्राप्त कर अंग्रेजी सेना ने वीर मनीराम जी अहिरवार को ढूंढने में सफल हो गये। उन्होंने यह तय किया कि ये मजबूत काठी का पहलवान है। इसको न जेल भेजेंगे और न ही इसका कोई चालान जारी करेंगे। अंततः उन्हें अंग्रेजी सेना द्रारा गुप्त रूप से गिरफ्तार किया गया। लेकिन किसी भी लोगों ने परिवार को जानकारी नहीं दी क्योंकि मनीराम जी चीचली राजा स्वर्गीय श्री शंकर प्रताप सिंह जू देव के राजदरबारी थे। जो गौड़वाना परिवार के साथ ही पूर्व से उनके साथ ही चीचली आये थे।
अंग्रेजो से की गई चुगली के अनुरूप वीर मनीराम जी को जिंदा सेना ने गुलामी कराने, बोझा /सामान यहां से वहां ले जाने यानि कि बेगारी कराने हेतु सेना ने उन्हें अपने गुप्त स्थान पर ले गए। वीर शहीद मनीराम जी एक स्वाभिमान और सामाजिक हितकारी व आन्दोलन के लिए कुर्बान हो जाने वाले महान व्यक्ति थे। सेना ने उन्हें तरह तरह की यातना दी। मारपीट करते रहे। लेकिन वीर मनीराम जी न चीचली राजा के गुप्त मामले बताया। और न ही गुलामी एवं बेगारी करने को तैयार हुये। उन्होंने हर प्रकार की प्रताड़ना सहर्ष स्वीकार कर ली, लेकिन अंग्रेजी सेना की एक भी बात नहीं मानी। अंग्रेजी सेना उन्हें अपनी गुप्त बंदीगाह में रखते थे। क्योंकि उन्हें यह भलीभांति ज्ञात हो चुका था कि मनीराम जी को थोड़ी सी भी डील दे दी गई तो ये समूची सेना को अकेले ही तबाही करने के लिए काफी है। वीर मनीराम जी अहिरवार को कठोर से कठोर यातनाओं के कारण उन्होंने हंसते – हंसते शहादत देकर अहिरवार समाज कुल को गौरवान्वित करने के साथ-साथ देश के आजादी आन्दोलन में संघर्ष किया है। वीर मनीराम जी अहिरवार के पुत्र स्वर्गीय श्री गरीबदास अहिरवार वीर मनीराम जी के चहेते पुत्र थे। जिनका परिवार आज भी चीचली में है। जो उनकी विरासत एवं अहिरवार समाज के साथ ही अनुसूचित जाति वर्ग के अमर शहीद वीर मनीराम जी अहिरवार की कुर्बानी पर सरकारी दर्जा न मिलने पर निरंतर संघर्ष कर रहे हैं। वीर मनीराम अहिरवार जी मध्यप्रदेश के एकमात्र ऐसे महान महापुरुष थे। देश की आजादी के आन्दोलन में अपने प्राणों की आहुति दी और सामाजिक स्वाभिमान को बढ़ाया है। जिनके संघर्ष करने के एक सप्ताह बाद अंग्रेजी सेना की किसी भी बात स्वीकार न करने के बाद मातृभूमि पर कुर्बानी देने पर सरकार को शीघ्र राष्ट्रीय शहीद दर्जा दिया जाना चाहिए।

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